ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम लोग यहाँ पर केतु ग्रह से विचारणीय व्यवसाय के बारे में जानेंगे -
समाज सेवा से जुड़े कार्य, ड्राइवर, धर्म, चलने फिरने वाला काम, मोटर पार्ट्स, आध्यात्मिक कार्य, रहस्यमयी विज्ञान, ऑपरेशन, काटने का काम, तोड़ने वाला कार्य |
वैदिक ज्योतिष में मान्य 27 नक्षत्रों में से केतु अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र का स्वामी है। यह एक अशुभ ग्रह है। केतु ग्रह की स्थिति के कारण व्यक्ति समाज सेवा, आध्यात्मिक क्षेत्र और धर्म आदि से जुड़े कार्य करता है तथा सेवा श्रम, दूसरों की मदद करना तथा धार्मिक संस्थाओं से जुड़कर काम करता है। जहरीले जीव, भूरे एवं काले रंग के पशु – पक्षी, आदि केतु के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। वैदिक शास्त्रों के अनुसार केतु ग्रह स्वर भानु राक्षस का धड़ है। जबकि इसके सिर के भाग को राहु कहते हैं। केतु बृहस्पति के प्रति अनुकूल है, और चंद्रमा, मंगल और सूर्य का शत्रु है। बुध, शुक्र और शनि केतु के अनुकूल ग्रह हैं। राहु-केतु उसी के सिर और शरीर हैं, जिन्हें स्वरभानू कहा जाता है और वे निश्चित रूप से एक दूसरे के अनुकूल हैं। ज्योतिष की माने तो राहु और केतु दोनों किसी जातक की जन्म कुण्डली में काल सर्प दोष का निर्माण करने का कारक होते हैं, तो वहीं दिशाओं में केतु का प्रभाव वायव्य कोण में माना गया है। ज्योतिष में केतु एक क्रूर ग्रह है, परंतु यदि केतु कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है। वैदिक ज्योतिष में केतु को अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष तथा तांत्रिक विद्या कारक माना गया है। ज्योतिष में केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन धनु केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथुन में यह नीच भाव में होता है।