फ़लित ज्योतिष के शास्त्रो में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर और छायापुत्र आदि.शनि के नक्षत्र हैं। पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद। यह दो राशियों मकर,और कुम्भ का स्वामी है। तुला राशि में २० अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के २० अंश प परमनीच है। नीलम शनि का रत्न है। शनि की तीसरी,सातवीं,और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है। शनि सूर्य,चन्द्र,मंगल का शत्रु,बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार,कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है। शनि ग्रह, कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है। इन प्रभावों का असर हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर पड़ता है। ज्योतिष में शनि एक क्रूर ग्रह है, परंतु यदि शनि कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम लोग यहाँ पर शनि ग्रह से विचारणीय विषय के बारे में जानेंगे -
साढ़ेसाती, ढैया, सन्यास, अध्यात्म,देरी,रोग, दुख, कष्ट,शोक, संताप, कालापन, बड़े दांत, अपवित्रता,पापी, गंभीर, न्याय प्रिय, स्नायु तंत्र, सेवक, अनुराधा, पुष्य व उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी, जीवन, मृत्यु, मृत्यु विषयक बातें, बाधाएं, विनाश, भय, पतन, जड़त्व, विषाद, दरिद्रता, वियोग, लंगड़ापन,झूठ, नपुंसकता, कठोरता, स्नायु तंत्र,नाड़ी संस्थान, योग, चमड़ा, तेल, लोहा, लकड़ी, प्रवास, शीशा, दीर्घकालिक रोग, वायु रोग, बाधा, उन्माद, जहरीले जीव जंतु, विदेशी भाषाएं, अंग्रेजी भाषा, आयु, कृषक, कुम्हार ,माली, मठाधीश, शमशान, बंजर, बड़ी आंख, नाड़ी तंत्र, गठिया रोग, घुटना, छोटी आत,रीढ़ की हड्डी, बाल, नाखून,पत्थर या पेड़ से चोट, तेल का व्यापार, मजदूरी,पत्थर, मोरंग, बालू, कृषि उपकरण, लोहे के सामान, श्रम वाले कार्य, लोहार, चोरी के कार्य, कारावास, फांसी, त्यागपत्र, तस्करी, अधेरे के कार्य, कीड़े मकोड़े, भिक्षा, न्यायालय, वकालत, लकड़ी का कार्य, कबाड़ी, रंगाई धुलाई, बर्तन, मशीनरी कार्य, खलनायक, लकवा,शरीर में कंपन, वात विकार का करक शनि है।