फ़लित ज्योतिष के शास्त्रों के अनुसार गुरु का सम्बन्ध बृहस्पति ग्रह से है जो आकाश तत्व का प्रतीक है, ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को गुरु ग्रह भी कहते हैं। बृहस्पति का तत्व आकाश होने से कोई भी वस्तु गुरु के सानिध्य में आने से गई गुना बड़ जाती है, यानि की उसमें वृद्धि होती है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में गुरू की दृष्टि को अमृतमय माना गया है। जन्मकुण्डली में जिस भी भाव पर देवगुरू बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है, उस भाव से संबंधित रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं एवं तत्वों की वृद्धि होती है। ज्योतिष में, गुरु ग्रह को ज्ञान, शिक्षा, धर्म, और धन का प्रतीक माना जाता है। यह व्यक्ति की जीवन दिशा, धार्मिक आस्था, और मानसिक विस्तार को प्रभावित करता है। गुरु की स्थिति और उसका विभिन्न भावों में स्थान व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है।
प्रथम भाव (लग्न भाव): गुरु का प्रथम भाव में होना व्यक्ति को ज्ञानवान, धार्मिक, और दयालु बनाता है।
पंचम भाव: गुरु का पंचम भाव में होना संतान सुख, शिक्षा में उन्नति, और सृजनात्मकता को बढ़ाता है।
नवम भाव: गुरु का नवम भाव में होना व्यक्ति को धार्मिक, आध्यात्मिक, और भाग्यशाली बनाता है।
गुरु का गोचर और उसकी दशा व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण घटनाओं का संकेत देती है। गुरु का गोचर लगभग 13 महीनों में एक राशि से दूसरी राशि में होता है, जो व्यक्ति की शिक्षा, धार्मिकता, और धन के मामलों को प्रभावित करता है। गुरु की महादशा और अंतर्दशा का भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम लोग यहाँ पर गुरु ग्रह से विचारणीय व्यवसाय के बारे में जानेंगे -
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