गुरु ग्रह से विचारणीय विषय।

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को 'गुरु' कहा जाता है। यह धनु और मीन राशि का स्वामी होता है और कर्क इसकी उच्च राशि है जबकि मकर इसकी नीच राशि मानी जाती है। गुरु ज्ञान, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि का कारक होता है। गुरु ग्रह को देवगुरु भी कहा जाता है। गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक माना जाता है।

गुरु ग्रह को मंत्रणा का कारक माना जाता है। गुरु ग्रह को आकाश तत्व का अधिपति माना जाता है। गुरु ग्रह को धनु और मीन राशि का स्वामी माना जाता है। गुरु ग्रह को कर्क राशि में उच्च भाव में माना जाता है। गुरु ग्रह को मकर राशि में नीच माना जाता है। गुरु ग्रह के नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, और पूर्वा भाद्रपद हैं। गुरु ग्रह से जुड़े रंग पीला है। गुरु ग्रह से जुड़ी धातु स्वर्ण है। गुरु ग्रह से जुड़े रत्न पुखराज और पीला नीलम हैं। गुरु ग्रह से जुड़ी ऋतु शीत ऋतु है। गुरु ग्रह से जुड़ी दिशा पूर्व है। गुरु ग्रह से जुड़ा तत्व आकाश है। गुरु ग्रह की दशा (विशमोत्तरी दशा) 16 साल की होती है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम लोग यहाँ पर बृहस्पति ग्रह  से विचारणीय विषय के बारे में जानेंगे -

विवेक,कप,धैर्य, अध्यात्म, संत स्वभाव, उदार स्वभाव, नीतिशास्त्र, पवित्रता, विद्या, ज्ञान का प्रयोग करना,धर्म,पुरोहिताई, बड़ा पेट,चौड़ी छाती, भूरा नेत्र, भूरे बाल, क्षमाशील, देवता ब्रह्मा जी, आकाश,चर्बी, कोषागार, धन, पुत्र, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी, शिक्षा, अध्ययन, अध्यापन, भाग्य में वृद्धि, राज्य सम्मान, मांगलिक कार्य, शुभ कार्यों में खर्चा, परदादा, आचार्य, मंत्री, प्रवचन, न्याय, जज, वकील, व्याकरण, ज्योतिष, मृत्यु उपरांत गति, घर, रक्त कणिकाएं,व्यवस्था, प्रबंधन, मैनेजमेंट, संचालन, तंत्र मंत्र, मंदिर,पुजारी,सभाएं, उत्सव, दानशीलता,सहानुभूति, सूजन रोग, नितंब, यकृति, पीलिया, कफ, गुर्दा, चर्बी का कारक गुरु ग्रह है।